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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें प्रवीण फ़क़ीर की ग़ज़ल ‘दयार’

झाँक कर दिल में यार देखोगे।
ख़ुद में मुझको शुमार देखोगे।।

एक रोटी पे झपटते बच्चे,
ये भी तुम इश्तेहार देखोगे।

फूल आएंगे बुत के हिस्से में,
अपने हिस्से में खार देखोगे।

बस उठे हाथ इक बगावत का,
हाथ उठते हज़ार देखोगे।

ज़हर फैला है गर हवाओ में,
कांपती सी बहार देखोगे।

जानवर हुक्मरान होंगे जब,
आदमी दरकिनार देखोगे।

दर्द के उठ रहे बवंडर में,
चीखता हर दयार देखोगे।

इक नज़र में है देखना होता,
तुम मुझे कितनी बार देखोगे।

गर दुआएं खरीदना चाहो,
हर सड़क पर मज़ार देखोगे।

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