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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें प्रदीप कुमार शुक्ल की कविता रुपइया

कटाजुज्झु है भइया घर मा
कोउ नहीं सुनवइया घर मा

जउनु रहैं सब लइगे काका
याकौ नहीं रुपइया घर मा

हलेकान भोरहे ते अम्मा
कोउ नहीं करवइया घर मा

बाहेर ते हम बचिकै लउटेन
हमला किहिनि ततइया घर मा

जहिका द्याखौ वहै मरकही
सीधी याक न गइया घर मा

कनकइया लीन्हे लरिकउना
लंगडु लेहे चचइया घर मा

बाजु देखि कय कांपि रही हैं
लउटी नहीं चिरइया घर मा

आगि लागि घर के चिराग ते
कलपै परा बुधइया घर मा

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