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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें पूनम सोनछात्रा की कविता बातों का प्रेम

A poem a day

अनेक स्तर थे प्रेम के
और उतने ही रूप

मैंने समय के साथ यह जाना कि
पति, परमेश्वर नहीं होता
वह एक साथी होता है
सबसे प्यारा, सबसे महत्वपूर्ण साथी
वरीयता के क्रम में
निश्चित रूप से सबसे ऊपर

लेकिन मैं ज़रा लालची रही

मुझे पति के साथ-साथ
उस प्रेमी की भी आवश्यकता महसूस हुई
जो मेरे जीवन में ज़िंदा रख सके ज़िंदगी
संँभाल सके मेरा बचपन
ज़िम्मेदारियों की पथरीली पगडंडी पर
जो मुझे याद दिलाए
कि मैं अब भी बेहद ख़ूबसूरत हूँ
जो बिना थके रोज़ मुझे सुना सके
मीर और ग़ालिब की ग़ज़लें
उन उदास रातों में
जब मुझे नींद नहीं आती
वह अपनी गोद में मेरा सिर रख
गा सके एक मीठी लोरी

मुझे बातों का प्रेम चाहिए
और एक बातूनी प्रेमी
जिसकी बातें मेरे लिए सुकून हों

क्या तुम जानते हो
कि जिस रोज़
तुम मुझे बातों की जगह अपनी बाँहों में भर लेते हो
उस रोज़
मैं अपनी नींद और सुकून
दोनों गँवा बैठती हूँ

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