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रोजाना एक कविता: पढ़िए अनीता जैन हिसार की कविता उजाला

रोजाना एक कविता

रातभर शम्अ की मानिन्द जला ले मुझको
सुब्ह होते ही बुझा देंगे उजाले मुझको

कहकशां माँगने की जिद ही नहीं है मेरी
ऐ ख़ुदा दे दे ज़रा से ही उजाले मुझको

मैं वो सिक्का हूँ जो तकदीर बदल देता है
शर्त ये है कोई शिद्दत से उछाले मुझको

साफ़गोई ही तो खटकी है जहां को मेरी
अब नहीं कोई यहाँ पर जो निभा ले मुझको

तुझसे माँगे हैं भला किसने खजाने धन के
पेट भरने के लिए दे दे निवाले मुझको

ज़िंदगी थकने लगी धूप में चलते चलते
अब तो ठंडी सी कोई छांव संभाले मुझको

अब यही सोच के डर मुझको बहुत लगता है
मेरी नादानी मुसीबत में न डाले मुझको

अनीता जैन हिसार (हरियाणा)

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