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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें ऐश्वर्य राय की कविता औरत

औरत
औरत

आकाश फूल ऊंची फुनगी पर है
उसे तोड़ने में असक्षम औरत,
चुन लेती है जमीन पर गिरे मसुआये फूलों में से
थोड़े ठीकठाक, पकौड़े तले जाने लायक़ फूल।
औरतें हमेशा चुन लेती हैं
बहुत ख़राब में से कुछ कामचलाऊ
परिवार के ख़ातिर,
उन औरतों का उदाहरण बार बार दिया जाता
उन नई लड़कियों को जो ब्याह के उम्र में
चढ़ जाती हैं आकाश फूल के पेड़ पर
नहीं सुनती हैं कोसा जाना शरीर के कद को
ना ही मानती है संतोष ज़मीन पर गिरे फूलों में,
उसके फूल चुनने का प्रयोजन ही नहीं था
बेटों पति ससुर के लिए कुछ छानना तलना
जब सभी ‘चोटरी जीभ’ बुलाते हैं
पूछना चाहती है हिसाब सभी हमउम्र लड़कों की जीभ से
जिनके दिनचर्या में हर शाम बाज़ार जाना
छोला पापड़ी समोसा चटखारे से खाना।
सुनते हुए बाज़ार का शोर,
सायकिल की ट्रिन ट्रिन,
मोटर बाइक की धूम करके किक स्टार्ट और पी पा पी पा,
छोटे लड़कों का एक दूसरे को चिल्लाकर बुलाना
उन लड़कों के बेफिजूल किये गए चांय चांय
पर झल्लाते हुए मन को एकदम जादुई ढंग से ठीक कर दे
जीभ पर अभी अभी उमड़ा गोलगप्पे का पानी,
क्यों नहीं होता ये ‘चटोरी’ लड़की के साथ,
इससे पहले कि पूछे किसी से जवाब
साल के दो मेले डाल दिए जाते हैं उसके खाते में,
दो दिन घर पर ला देता है कोई चाट फुचका,
चार दिन की संख्या में जोड़कर “क्या जरूरत है फ़ालतू बाहर जाने की”
लड़की को बनाने की कोशिश में जुट चुका होता है पूरा घर
आकाश फूल चुनकर उठाने वाली ‘औरत’।

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