किस नाम से संबोधित करूं तुम्हें? दोस्त तो मैंने माना लिया था… पर तुम्हारे मन में क्या चल रहा था, इसकी तो कभी मैंने सोचने की भी कोशिश न की। वाटसप्प ग्रुप में रोज दुआ सलाम के साथ कभी कभी पर्सनल पर भी बातें होती ही थी । मुझे क्यों खबर नहीं हुई कि ये सोशल मीडिया पर रोज का साथ… बहुत लंबा साथ नही देगा। मेरे मन को क्यों नहीं कभी आभास हुआ या शायद मैंने सबको खो देने के भय से उस पहलू को सोचा ही नहीं या देखना भी न चाहा।
समसामयिक विषयों से कभी अछूता नहीं रहे हम सब। लेकिन विषयों में राजनीति आ जाये तो मर्यादाएं क्यों टूटने लगती हैं? क्यों वो प्यार, अहसास, साथ का अहसास नगण्य हो गया। उसी राजनीति के कारण काफी हंगामा हुआ। मुझे तुम सब से दूर हो जाना पड़ा। गुस्से और अपमान से आहत हो मैंने खुद को सबसे अलग कर लिया। पर आरोपों का सिलसिला ख़त्म कहां हुआ ?
आज एक साल बाद मैं भी खुद को वही खड़ा पा रही हूं। एकदम ..से ये अकेलापन और खोखलापन जैसे मेरे मन …मेरे वजूद में भरता जा रहा। कुछ वक्त इतनी ही नफरत और बद्दुआओं में जीती रही तो मैं खुद को खो दूंगी। उस वक्त भी कोई साथ नही खड़ा था मेरे। मैंने पहले भी कहा…. बहुत याद की हूं। वो सब जो मुझसे छीन गया और खुलकर हंसना सीख गई तुम सब से मिलकर। जो कुछ याद थे वो मिले और कुछ नए उसी जगह से, जो सच में बहुत अच्छे दोस्त से बने। गर्ल्स बॉयज दोनों। बॉयज गर्ल की लक्ष्मण रेखा तुमसब के मन में होगी पर मेरे दिमाग में नहीं रही कभी। लेकिन मैं भूल गयी कि जरूरी नहीं मैं उनके लिए भी उतनी खास हूं जितने वो मेरे लिए । सब मुझे कसौटी पर कसने से लगे और अचानक से मैं विलेन बन गयी। मैं जीने आयी थी पर लग रहा जैसे अपनी ही कब्र बना ली हूँ। मैं हैरान हूं, दुखी भी हूं। इतनी नफरत कहां से लाते हो तुम सब मेरे लिए????
सिर्फ इसलिये कि मेरा साथ कॉलेज तक नहीं था या मैं तुम्हारे स्कूल से नही थी कभी। मैंने अपनी बात लिख दी। मुझे नहीं पता था कि मिसफिट हूं तुम सब में। सबकी नजरों में आज गलत केवल और केवल मैं हूं। आज तुम्हे ख़त लिखकर ये जानते हुए भी कि इसका जवाब तुम नही दोगे ..इंतजार से बंधी रहूंगी मैं…
तुम्हारी …?